Color Heading... : लोहाघाट:बातों-बातों में:-हम भारत के लोग: भगवत प्रसाद पांडे
Laxman Singh Bisht
Wed, Nov 26, 2025
बातों-बातों में:-
हम भारत के लोग
वर्ष 1949 में आज ही के दिन यानी 26 नवंबर को संविधान सभा ने वह महान दस्तावेज़ अपनाया जिसे हम सभी भारतीय गर्व से भारत का संविधान कहते हैं। हॉलांकि यह 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ। संविधान दिवस हमें याद दिलाता है उस संविधान को जिसने हमें अधिकार भी दिए और कर्तव्य भी, उम्मीदें भी दीं और एक व्यवस्था भी लेकिन यह वही संविधान है जिसे कुछ लोग मंचों पर जेब से निकालकर हवा में लहराते हैं। यह वही संविधान है जिसकी शपथ तो "हम भारत के लोग......." कह कर लेते रहते हैं, पर उसकी आत्मा को सबसे ज़्यादा हम ही ठेस पहुँचाते हैं। हम भारत के लोग... 'बातें-बातों में' बहुत कुछ कहते हैं और करते अक्सर ठीक उल्टा हैं। हम भारत के लोग सबके लिए कानून बराबर होने की बात करते हैं, पर जब नियमों की तलवार हमारी तरफ घूमती है, तो हमें अचानक मानवीयता, लचीलेपन और चलो, इस बार छोड़ दो की याद आने लगती है। हम भारत के लोग व्यवस्था बदलने के सपने रोज़ देखते हैं, पर खुद में बदलाव की पहल शायद ही कभी करते हों। हम भारत के लोग लोकतंत्र को मजबूत बनाने की बातें तो खूब कहते हैं, लेकिन लोकतंत्र को मजबूत करने वाली बुनियादी आदतें जैसे-ईमानदारी, जवाबदेही और अनुशासन इनसे हम दूर-दूर तक परिचित नहीं दिखते। हम भारत के लोग भ्रष्टाचार को तब तक सबसे बड़ा पाप समझते हैं, जब तक कि उससे फायदा किसी और को हो रहा हो। लेकिन यदि “छोप-छाप” में कुछ मिल जाए, “सेटिंग” से कोई काम निकल जाए, या “थोड़ा बहुत तो चलता है” वाली संस्कृति हमारे हक में हो, तो हम बड़ी सहजता से स्वीकार भी कर लेते हैं। हम भारत के लोग यातायात नियमों पर ज्ञान का भंडार बाँटते फिरते हैं। हेलमेट न पहनने पर उल्टा पुलिस को कोसना, सीटबेल्ट के लिए बहस, रेड लाइट तोड़कर दूसरों को ट्रैफिक सिखाना—यह सब हमारी खासियत है। हम भारत के लोग दूसरों को कतार में लगने की सलाह देते हैं, लेकिन खुद लाइन में खड़े होते-होते हमारे भीतर की अति विशिष्ट व्यक्ति (vvip) वाली आत्मा जाग जाती है। हम भारत के लोग साफ-सफाई पर तो टनों भाषण दे सकते हैं। बस कूड़ा उठाकर पास के खाली प्लॉट में फेंक देना हम अपना मौलिक अधिकार समझते हैं। हम भारत के लोग नेता भी ऐसे चुनते हैं जो हेलीकॉप्टर से उतरकर बड़े-बड़े वादों की बौछार करते हैं। वे ऊपर से आते हैं, लेकिन समस्याएँ नीचे से उन तक कभी पहुँच ही नहीं पातीं—कभी रास्ते में ही थक जाती हैं, कभी फाइलों की भीड़ में दब जाती हैं, और समाधान तो अक्सर होता ही नहीं।
हम भारत के लोगों की विडंबना यह नहीं कि हम आदर्श नहीं हैं।हमारी विडंबना यह है कि हम अपने आदर्शों की बातें बहुत करते हैं और अपने व्यवहार की समीक्षा कभी नहीं करते।
यह संविधान दिवस केवल एक तारीख नहीं है। यह एक दर्पण है, जिसमें झाँककर हमें यह देखना चाहिए कि “हम भारत के लोग” वास्तव में कितनी दूर आए हैं और कितनी दूर जाना बाकी है।
लेकिन दुःख यही है कि हम इस दर्पण को बड़ी आसानी से दीवार की ओर घुमा देते हैं और व्यस्त हो जाते हैं उसी देश को बचाने की बातें करके जिसे हम रोज़ अपनी आदतों से कमजोर करते जाते हैं। हम भारत के लोग…
यदि "बातों-बातों में" इतना ही देश बदल पाते, तो शायद आज यह व्यंग्य लिखने की मुझे भी ज़रूरत ही न पड़ती।
■भगवत प्रसाद पाण्डेय
(लेखक राजस्व विभाग के से.नि. सीएओ और साहित्यकार हैं)