उत्तराखंड

संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए जनपद चम्पावत में आयोजित हुई संस्कृत संगोष्ठी

रिर्पोट: लक्ष्मण बिष्ट

Kali Kumaun Khabar

उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी के तत्वाधान में जनपद चम्पावत में संगोष्ठी का आयोजन हुआ। जिसका विषय था- उत्तराखण्ड की लोक कलाओं में संस्कृत का प्रभाव। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो जया तिवारी जी ने सारगर्भित व्याख्यान दिया, और बहुमूल्य उदाहरणों और उद्धरणों से श्रोताओं को लाभान्वित किया। उन्होंने कहा कि संस्कृत अत्यन्त प्राचीन और सार्वभौमिक भाषा के रूप में प्रख्यात रही है। संस्कृत के पग पग में चिह्न हमें लोक कला में मिला करते हैं। हमारी पूजा पद्धति से लेकर लोक भाषा में भी संस्कृत के शब्द अनुस्यूत हैं।

विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रख्यात वक्ता एवं वर्तमान में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय चम्पावत के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. विनय विद्यालंकार जी ने कहा कि संस्कृत भाषा वैदिक काल से अविच्छन्न रूप से प्रवाहित होती रही है। हिमालयी भू भाग पूर्व से ही ऋषियों की कर्म स्थली रही है और आज भी संस्कृत का स्पष्ट प्रभाव यहां के निवासियों में भी दिखाई देता है।सारस्वत अतिथि राष्ट्रपति पुरस्कृत डॉ कीर्तिवल्लभ शक्टा ने कहा कि द्वितीय राजभाषा के होने से उत्तराखण्ड और संस्कृत दोनों का महत्व बढ़ गया है। कार्यक्रम की अध्यक्ष प्रो. संगीता गुप्ता, स्वामी विवेकानन्द राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय लोहाघाट ने बताया कि उत्तराखण्ड के दोनों मण्डलों पर्याप्त मात्रा में रामायण एवं महाभारतकालीन साक्ष्य मिलते हैं। चम्पावत स्थित हिडिम्बा व घटोत्कच मन्दिर इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। कार्यक्रम के संयोजक डॉ कमलेश शक्टा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया

और कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। राज्य संयोजक डॉ हरीश चन्द्र गुर्रारी ने अकादमी के द्वारा किये जा रहे विभिन्न कार्योें का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया। सह संयोजक डॉ हेम चन्द्र तिवारी ने मुख्य वक्ता के विषय में श्रोताओं को जानकारी प्रदान की। कार्यक्रम सदस्य डॉ भूप सिंह धामी ने सभी उपस्थित विद्वानों एवं प्राध्यापकों के प्रति आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर डॉ अनीता टम्टा, डॉ लता कैड़ा, डॉ प्रकाश लखेड़ा सहित 40 छात्र छात्रायें उपस्थित रहे। यह कार्यक्रम आनलाईन माध्यम से सम्पन्न हुआ।


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