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रिपोर्ट:लक्ष्मण बिष्ट : विजय दिवस : शौर्य, स्मृति और नमन का अमर पर्व

Laxman Singh Bisht

Tue, Dec 16, 2025

विजय दिवस : शौर्य, स्मृति और नमन का अमर पर्व ।

भारत वर्ष का गौरवशाली अतीत हमेशा सार्थक और प्रेरणादाई विश्व को राह दिखाने वाला रहा है।

1971 का युद्ध केवल दो देशों के बीच लड़ा गया संघर्ष नहीं था, वह इतिहास की वह निर्णायक रेखा थी जिसने पाकिस्तान की भौगोलिक ही नहीं, मानसिक दिशा भी सदा के लिए बदल दी। पूर्वी पाकिस्तान का अलग होना और स्वतंत्र राष्ट्र बांग्लादेश का जन्म — यह किसी राजनीतिक संयोग का परिणाम नहीं था, बल्कि भारतीय सेना के अद्वितीय कौशल, अनुशासन और पराक्रम की जीवंत गाथा था।उस युद्ध में पाकिस्तान के 90,000 से अधिक सैनिकों का आत्मसमर्पण विश्व सैन्य इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक बन गया एक ऐसा घाव जो आज भी पाकिस्तान की स्मृतियों में टीस बनकर जीवित है।1965 के युद्ध के बाद जिस हिमाकत और दुस्साहस के साथ पाकिस्तान ने भारत की सीमाओं को ललकारने का प्रयास किया, उसका माकूल और निर्णायक उत्तर हमारे वीर सैनिकों ने 1971 में दिया। यह उत्तर शब्दों से नहीं, रणभूमि में बहते लहू, तपते बारूद और अडिग संकल्प से लिखा गया। राज्य आंदोलनकारी भूपेश देव ताऊ ने बताया इस महायुद्ध में मेरे पिता, कैप्टन प्रहलाद सिंह देव, भी उस स्वर्णिम इतिहास के साक्षी और सहभागी रहे। वे बताते थे कि जम्मू के सांबा सेक्टर में जहाँ पाकिस्तान की सरहद साँसों की दूरी पर थी किस प्रकार दुश्मन की आँखों में आँख डालकर हमारी यूनिट के जांबाज़ जंगी जवानों ने घुसपैठ के हर प्रयास को विफल कर दिया।वह केवल एक सेक्टर नहीं था, वह भारत माता का वह द्वार था जहाँ हर जवान सीमा नहीं, सम्मान की रक्षा कर रहा था।तोपों की गर्जना, गोलियों की सनसनाहट और हर पल मृत्यु से साक्षात्कार के बीच भी भारतीय सैनिकों के कदम नहीं डगमगाए।और फिर आया वह ऐतिहासिक क्षण **विजय दिवस* जब ढाका में आत्मसमर्पण के दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर हुए, और भारत ने केवल एक युद्ध नहीं जीता, बल्कि मानवता, न्याय और साहस का परचम पूरी दुनिया में लहरा दिया।आज, इस विजय दिवस पर, जब राष्ट्र गर्व से सिर ऊँचा कर अपने वीरों को नमन करता है, मेरे लिए यह दिन गर्व के साथ-साथ गहन वेदना भी लेकर आता है।मेरे पिता, कैप्टन पी. एस. देव जी, को पंचतत्व में विलीन हुए आज एक माह हो गया है।अन्यथा आज के दिन उनकी भुजाएँ फिर से फड़क उठतीं, आँखों में वही चमक होती, और स्वर में वही गर्व गूँजता —“हमने इतिहास को जिया है।”वे भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, पर उनका शौर्य, उनकी स्मृतियाँ और उनका सैन्य अनुशासन आज भी जीवित है मेरे भीतर, इस राष्ट्र के भीतर, और उस अमर इतिहास के हर पन्ने में।

विजय दिवस केवल अतीत की स्मृति नहीं, यह वर्तमान की चेतना और भविष्य का संकल्प है।

आज हम नमन करते हैं उन सभी वीर सैनिकों को — ज्ञात और अज्ञात — जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर इस तिरंगे को सम्मान दिलाया।

जय हिन्द।

जय भारत।

विजय दिवस अमर रहे।

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