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रिपोर्ट:लक्ष्मण बिष्ट 👹👹 : चम्पावत ज़िले की ऐपन गर्ल लक्षिता जोशी दे रही हैं लोक कला को नयी पहचान।।

Laxman Singh Bisht

Wed, Aug 6, 2025

चम्पावत ज़िले की ऐपन गर्ल लक्षिता जोशी दे रही हैं लोक कला को नयी पहचान।उत्तराखंड की पावन धरती सदा से ही कला, संस्कृति और परंपराओं की अमूल्य धरोहर को संजोती आई है। इन्हीं परंपराओं में से एक है “ऐपन कला” — एक ऐसी लोकचित्र शैली, जिसमें देवी-देवताओं, धार्मिक प्रतीकों और शुभ अवसरों के लिए विशेष चित्र बनाए जाते हैं। इस पारंपरिक कला को आज के युग में जीवित रखना और उसे नए रूप में प्रस्तुत करना जितना कठिन है, उतना ही आवश्यक भी।चम्पावत ज़िले के रेगडू लोहाघाट गाँव की बेटी लक्षिता जोशी ने इस कठिन कार्य को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया है। आज उन्हें लोग प्यार से “ऐपन गर्ल” कहकर पुकारते हैं — और यह उपाधि उन्होंने अपने हुनर, मेहनत और समर्पण से कमाई है।लक्षिता को ऐपन कला की ओर आकर्षण बचपन से ही था। जब दूसरे बच्चे खेलकूद में व्यस्त होते, तब लक्षिता चावल के आटे से बनी रेखाओं में रंग भरने में मग्न रहतीं। घर के आंगन, पूजा स्थल या किसी उत्सव के अवसर पर उनके बनाए चित्र सभी को मंत्रमुग्ध कर देते। समय के साथ उन्होंने इस कला को न सिर्फ सीखा, बल्कि उसमें अपनी कल्पनाओं और रचनात्मकता का अद्भुत संगम भी जोड़ा।क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता युवा शशांक पांडे ने बताया कुछ साल पहले तक लक्षिता जोशी का यह हुनर केवल उनके गांव और जानने वालों तक ही सीमित था। लेकिन जैसे ही उन्होंने अपने ऐपन कार्य को सोशल मीडिया पर साझा करना शुरू किया, एक नई दुनिया उनके सामने खुल गई। उनके द्वारा बनाए गए ऐपन फ्रेम, करवाचौथ थालियाँ, पूजा थाली सेट, शुभ लाभ चौकी, और सांस्कृतिक प्रतीक देशभर के लोगों को बेहद पसंद आने लगे।पांडे ने बताया आज लक्षिता देश के कई राज्यों में अपने उत्पाद भेज रही हैं। उनके पास देश के कई स्थानों से ऑर्डर आते है जिनमें नवरात्रि, तीज, दीवाली, करवाचौथ जैसे पर्वों के लिए विशेष डिजाइन की मांग रहती है।लक्षिता के कार्य की सबसे खास बात यह है कि उसमें परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है। वह पुराने पारंपरिक डिज़ाइनों को आधुनिक टच के साथ फ्रेम, सजावटी वस्तुओं और उपयोगी सामानों में ढालती हैं, जिससे ये उत्पाद न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं, बल्कि सजावट और उपहार के रूप में भी आदर्श बन जाते हैं।उनकी बनाई चीज़ें हर आयु वर्ग को आकर्षित करती हैं — चाहे वह गाँव की बुजुर्ग महिलाएं हों, या शहरों की युवा पीढ़ी।लक्षिता का यह प्रयास उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना रहा है। वह स्वयं ही डिज़ाइन बनाती हैं, सामग्री जुटाती हैं और डिलीवरी तक की प्रक्रिया संभालती हैं।लोक कला एवं संस्कृति प्रेमी शशांक पाण्डेय ने बताया कि ऐपन कला केवल एक चित्रकला नहीं, बल्कि उत्तराखंड की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान है। उन्होंने कहा कि लक्षिता जोशी इस पहचान को देशभर में पुनर्जीवित कर रही हैं। वह इस बात का उदाहरण हैं कि अगर सही दिशा में जुनून और लगन के साथ काम किया जाए तो कोई भी कला कभी नहीं मरती। शशांक ने कहा आज जब दुनिया डिजिटल और मशीन-निर्मित चीज़ों की ओर भाग रही है, ऐसे में लक्षिता जोशी जैसी युवा कलाकारें हस्तशिल्प और लोककला की आत्मा को जीवित रखे हुए हैं। वह नारी सशक्तिकरण, सांस्कृतिक चेतना और आत्मनिर्भर भारत की एक सशक्त मिसाल हैं।उनका कार्य यह भी सिद्ध करता है कि कला केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि रोज़गार, पहचान और गौरव का साधन भी बन सकती है।

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