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रिपोर्ट:लक्ष्मण बिष्ट 👹👹 : लोहाघाट:आस्था एवं लोकसंस्कृति का केंद्र है झूमाधुरी मंदिर-शशांक पाण्डेय

Laxman Singh Bisht

Thu, Aug 21, 2025

आस्था एवं लोकसंस्कृति का केंद्र है झूमाधुरी मंदिर-शशांक पाण्डेयउत्तराखंड के चम्पावत जनपद की सुरम्य वादियों में स्थित झूमाधुरी मंदिर लोकआस्था और भक्ति का अद्भुत संगम है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण भी विशेष पहचान रखता है। माँ झूमाधुरी को शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है और हर वर्ष यहाँ लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुँचते हैं।स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, माँ झूमाधुरी का मंदिर इस क्षेत्र में शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र रहा है। कहते हैं कि संकट और विपत्ति के समय माँ अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। माँ की कई चमत्कारी कथाएँ सुनाई देती हैं। माना जाता है कि श्रद्धापूर्वक माँ के दरबार में आने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।सर्वाधिक मान्यता इस बात की है कि झूमाधुरी मैया निःसंतान महिलाओं के लिए वरदान स्वरूप है।मंदिर में वर्षभर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन विशेष अवसर नन्दा अष्टमी और नवरात्र के दौरान यहाँ अपार भीड़ उमड़ती है। नन्दा अष्टमी के दौरान पाटन पाटनी एवं रायकोट से विशाल रथ यात्रा निकलती है, जिसमें हजारों भक्त शामिल होकर माँ झूमाधुरी के जयकारों से वातावरण को गुंजायमान करते हैं। रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन का आयोजन मंदिर परिसर को पूर्णतः आध्यात्मिक माहौल में डुबो देता है।झूमाधुरी मंदिर केवल पूजा-अर्चना का स्थान नहीं, बल्कि लोकसंस्कृति और परंपराओं का केंद्र भी है। नन्दा अष्टमी महोत्सव में खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम, लोकगीत और लोकनृत्य की झलक इस क्षेत्र की समृद्ध धरोहर को प्रदर्शित करती है। यहाँ की पारंपरिक धुनें, ढोल-दमाऊ की थाप और लोककलाकारों की प्रस्तुतियाँ न सिर्फ श्रद्धालुओं का मन मोह लेती हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़े रखने का काम करती हैं।मंदिर का परिवेश हरियाली से घिरा हुआ है। यहस्थान श्रद्धालुओं को आत्मिक शांति का अनुभव कराते हैं। पहाड़ी वादियों में गूंजते माँ के जयकारे भक्तों के हृदय को उल्लास और श्रद्धा से भर देते हैं। यहाँ आने वाला हर व्यक्ति अपने आप को माँ की गोद में सुरक्षित और शांत महसूस करता है।झूमाधुरी मंदिर ने सदियों से स्थानीय समाज और संस्कृति को एक सूत्र में पिरोए रखा है। महोत्सव के अवसर पर यहाँ व्यापारिक गतिविधियाँ भी चरम पर रहती हैं, जिससे स्थानीय लोगों की आजीविका को सहारा मिलता है। गाँव-गाँव के लोग सामूहिक रूप से इस आयोजन में शामिल होते हैं, जिससे आपसी भाईचारा और सहयोग की परंपरा मजबूत होती है।झूमाधुरी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति, परंपरा और सामाजिक समरसता का जीवंत प्रतीक है। माँ झूमाधुरी के दरबार में आने वाला हर श्रद्धालु अपनी थकान और दुख भूलकर नई ऊर्जा और विश्वास से भर जाता है। यही कारण है कि यह मंदिर चम्पावत ही नहीं, बल्कि पूरे कुमाऊँ क्षेत्र की पहचान बन चुका है और लोगों की भक्ति का केंद्र बना हुआ है।इस वर्ष मंदिर में रात्रि जागरण 30 अगस्त एवं रथयात्रा 31 अगस्त को निकाली जायेंगी।लेखक शशांक पाण्डेय ग्राम पाटन पाटनी निवासी एवं झूमाधुरी महोत्सव के सचिव है

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