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रिपोर्ट:लक्ष्मण बिष्ट : लोहाघाट:झूमाधुरी महोत्सव की दूसरी शाम रही स्टार कलाकारों के नाम

Laxman Singh Bisht

Sat, Aug 30, 2025

झूमाधुरी महोत्सव की दूसरी शाम रही स्टार कलाकारों के नामदेवभूमि उत्तराखण्ड की संस्कृति का जादू तब देखने को मिलता है जब यहाँ के मेले और महोत्सव अपने पूरे रंग में आते हैं। ठीक ऐसा ही दृश्य लोहाघाट में चल रहे माँ झूमाधुरी महोत्सव की दूसरी शाम को देखने को मिला। परंपरा और आधुनिकता के संगम से सजी यह संध्या देर रात तक कला, संगीत और नृत्य का अद्भुत संगम बनकर उपस्थित जनसमूह के दिलों पर गहरी छाप छोड़ गई।सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ बड़े ही हर्षोल्लास और गरिमामयी वातावरण में हुआ। मंच पर ब्लॉक प्रमुख लोहाघाट महेंद्र ढेक, चम्पावत नगर पालिका प्रतिनिधि शंकर दत्त पाण्डेय तथा भाजपा युवा मोर्चा अध्यक्ष गौरव पाण्डे ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस अवसर पर महोत्सव समिति के अध्यक्ष मोहन पाटनी ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि झूमाधुरी महोत्सव केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा और सामूहिक एकता का प्रतीक है।कार्यक्रम की कमान संचालन की दृष्टि से भी शानदार रही।गिरीश कुँवर और जगदीश पाटनी ने संचालन में योगदान दिया तो वही शशांक पांडेय ने अपने सधी हुई आवाज़ और जोशीले अंदाज़ से कार्यक्रम को निरंतर ऊर्जावान बनाए रखा। उनके मंच संचालन ने दर्शकों को बांधे रखा और हर प्रस्तुति को और अधिक प्रभावी बना दिया।दूसरे दिन की सांस्कृतिक संध्या का सबसे बड़ा आकर्षण स्टार कलाकार रहे।उत्तराखण्ड की प्रसिद्ध नृत्यांगना दीक्षा तोमक्याल ने जब मंच पर कदम रखा, तो पूरा पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। उनकी नृत्य प्रस्तुतियों में कुमाऊँ की संस्कृति और आधुनिक मंचीय अदाओं का अनूठा संगम देखने को मिला। दर्शक देर रात तक उनकी हर थिरकन पर झूमते रहे।लोकगायक कैलाश कुमार ,राकेश खनवाल एवं प्रदीप कुमार ने अपनी मधुर आवाज़ और लोकधुनों से समां बाँध दिया। पहाड़ी गीतों से लेकर भावपूर्ण झोड़ा-चांचरी तक, उनकी प्रस्तुति ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।अन्य स्थानीय कलाकारों ने भी मंच पर अपनी प्रतिभा का परिचय देकर यह सिद्ध किया कि लोहाघाट की धरा कला और संस्कृति से भरी हुई है।इस अवसर पर लोक कला दर्पण लोहाघाट की टीम ने भी मंच पर शानदार प्रस्तुतियाँ दीं। दलनायक भैरव राय के नेतृत्व में कलाकारों ने लोकगीत, लोकनृत्य और पारंपरिक झोड़े-चांचरी की ऐसी छटा बिखेरी कि दर्शक अपने स्थान से उठकर तालियों की गूंज में शामिल हो गए। पारंपरिक वाद्ययंत्रों की थाप और सुरों की मिठास ने दर्शकों को देर रात तक बांधे रखा।झूमाधुरी महोत्सव की यह संध्या केवल मनोरंजन का साधन नहीं थी, बल्कि इसने उत्तराखण्ड की संस्कृति, लोककला और सामूहिक आस्था का भी अद्भुत संगम प्रस्तुत किया। एक ओर मंच पर झोड़े-चांचरी की गूंज थी, तो दूसरी ओर आधुनिक मंचीय प्रस्तुतियाँ भी युवाओं को आकर्षित कर रही थीं। यही कारण है कि हर उम्र का दर्शक इस संध्या में पूरी तल्लीनता से डूबा रहा।महोत्सव का पंडाल देर रात तक खचाखच भरा रहा। हर प्रस्तुति पर दर्शकों ने तालियों और जयकारों से कलाकारों का उत्साहवर्धन किया। नृत्य, गीत और संगीत के इस अद्भुत संगम ने यह साबित कर दिया कि लोहाघाट की धरती न केवल आस्था का केंद्र है बल्कि सांस्कृतिक चेतना का भी मजबूत गढ़ है।दूसरे दिन की यह संध्या हर दृष्टि से अविस्मरणीय रही। यह आयोजन आने वाले दिनों में भी लोगों को संस्कृति, कला और सामूहिक एकता की शक्ति का अनुभव कराता रहेगा। झूमाधुरी महोत्सव ने एक बार फिर सिद्ध किया कि परंपराएँ जब कला के साथ जुड़ती हैं तो वे पूरे समाज को प्रेरित और ऊर्जावान बनाती हैं।कार्यक्रम में बड़ी संख्या में क्षेत्रीय गणमान्य लोग मौजूद रहे। इनमें प्रमुख रूप से ग्राम प्रधान पाटन नीतू विश्वकर्मा, शोभन बोहरा, प्रकाश विश्वकर्मा, दीपक कुमार, बलवंत कुमार, प्रदीप कुमार, रमेश पाटनी, हेम पाटनी, कमल कुलेठा, रोशन महर, हरीश पाटनी, मदन विश्वकर्मा, प्रकाश बोहरा, सुभाष राम, बसंत कुमार आदि शामिल रहे। उनकी उपस्थिति ने इस सांस्कृतिक संध्या की गरिमा को और अधिक बढ़ाया।वही संचालन कर रहे शशांक पाण्डे ने बताया कि दूसरा दिन ऐतिहासिक भीड़ का गवाह बना जहां शांति पूर्वक और संयम के साथ कार्यक्रम संपन्न हुए।

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