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रिपोर्ट:लक्ष्मण बिष्ट : अगर सरदार पटेल न होते, तो भारत की एकता अधूरी रह जाती-शशांक पाण्डेय

Laxman Singh Bisht

Fri, Oct 31, 2025

अगर सरदार पटेल न होते, तो भारत की एकता अधूरी रह जाती-शशांक पाण्डेयसरदार वल्लभ भाई पटेल का नाम भारतीय इतिहास में एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में अंकित है, जिसने अखंड भारत की नींव रखी और अपने अदम्य साहस, दूरदर्शिता और राजनीतिक कुशलता से राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने का ऐतिहासिक कार्य किया। उनका जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले के नडियाद में एक लेवा पाटीदार किसान परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूलों में हुई, किंतु उच्च शिक्षा की ललक ने उन्हें इंग्लैंड जाकर कानून की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने मध्यम वर्गीय पृष्ठभूमि से आने के बावजूद स्वयं के संसाधनों से पढ़ाई की और बैरिस्टर बनकर लौटे। अहमदाबाद में वकालत शुरू करते ही वे एक सफल और सम्मानित बैरिस्टर के रूप में प्रसिद्ध हो गए। उनके जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब वे महात्मा गांधी के विचारों और आदर्शों से प्रभावित हुए और उन्होंने स्वयं को पूर्ण रूप से भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर दिया।स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका अत्यंत सक्रिय और निर्णायक रही। खेड़ा सत्याग्रह और बारदोली सत्याग्रह जैसे किसान आंदोलनों का सफलतापूर्वक नेतृत्व करके उन्होंने अपनी असाधारण संगठन क्षमता और जन-नेतृत्व का परिचय दिया। बारदोली सत्याग्रह की सफलता के बाद ही उन्हें 'सरदार' की उपाधि से विभूषित किया गया, जो आज भी उनके नाम के साथ अटूट रूप से जुड़ी हुई है। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख स्तंभ थे और कांग्रेस के भीतर उनकी छवि एक ठोस, व्यावहारिक और दृढ़ निश्चयी नेता की थी। भारत छोड़ो आंदोलन सहित अनेक संघर्षों में उन्होंने जेल की सजा भी भोगी।

किंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद का उनका कार्य उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और गौरवशाली अध्याय सिद्ध हुआ। उन्हें नवस्वतंत्र भारत का पहला उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाया गया। इस पद पर रहते हुए उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती पाँच सौ से अधिक देशी रियासतों का एकीकरण कर भारतीय संघ का निर्माण करना था। यह एक अत्यंत जटिल कार्य था, क्योंकि कई रियासतें अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखना चाहती थीं। सरदार पटेल ने अपनी अद्भुत राजनीतिक सूझबूझ, कूटनीति और दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए 'लौह और अग्नि' की नीति अपनाई। उन्होंने देशी राजाओं से राष्ट्रहित में समझौता करने का आह्वान किया और अधिकांश रियासतों को शांतिपूर्ण ढंग से भारत में मिला लिया। जहाँ शक्ति की आवश्यकता पड़ी, जैसे हैदराबाद के मामले में, वहाँ 'ऑपरेशन पोलो' जैसा सैन्य कार्यवाही करने में भी वे पीछे नहीं हटे। जूनागढ़ के विवादित मामले को भी उन्होंने जनमत के आधार पर सुलझाया। इस प्रकार, उन्होंने आधुनिक भारत के मानचित्र को गढ़ने में निर्णायक भूमिका निभाई, जिसके कारण उन्हें 'भारत का लौह पुरुष' कहा जाता है।

राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान का एक और महत्वपूर्ण पहलू भारतीय प्रशासनिक सेवाओं और भारतीय पुलिस सेवा जैसी सशक्त अखिल भारतीय सेवाओं का गठन करना था। उनका मानना था कि एक मजबूत और निष्पक्ष नौकरशाही ही देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने तथा विकास को गति देने में सक्षम हो सकती है। उन्हें 'भारतीय नागरिक सेवाओं का संरक्षक संत' भी कहा जाता है। सरदार पटेल एक ऐसे राष्ट्रवादी थे जिनकी दृष्टि स्पष्ट और लक्ष्य निश्चित था। वे धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर थे, किंतु अंधविश्वास और साम्प्रदायिकता के घोर विरोधी थे। सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण में उनकी रुचि ने उनके सांस्कृतिक पुनरुत्थानवादी चिंतन को भी दर्शाया। दुर्भाग्यवश, स्वतंत्रता के महज तीन वर्ष बाद, 15 दिसंबर, 1950 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया और देश अपना एक महान सपूत खो बैठा।

आज, गुजरात के केवड़िया में नर्मदा नदी के तट पर स्थित 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा के रूप में उनके अतुल्य योगदान को श्रद्धांजलि देती है। सरदार पटेल की जयंती केवल उत्सव के साथ साथ यह राष्ट्रीय एकता, अखंडता, दृढ़ संकल्प और निस्वार्थ सेवा के मूल्यों को याद करने और अपनाने का दिन है, जिनके लिए वे सदैव जीवित रहेंगे। उनका जीवन और कार्य प्रत्येक भारतीय के लिए प्रेरणा का अनंत स्रोत है।

(लेखक लोहाघाट निवासी एवं राजनीति विज्ञान विषय के शिक्षक हैं)

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